देश के आजाद होते ही हमारे नेताओं ने मन्थन किया कि स्वतंत्र भारत का शासन और प्रशासन कैसा हो और तय किया कि जनतंत्र के लिये आवश्यक है कि विभिन्न वर्गों में व्याप्त सामाजिक व आर्थिक असमानता को दूर किया जाये तथा सदियों से दलित,शोषित व पिछडे वर्गों को आगे लाकर उनको देश के चलाने में बराबर के भागीदार बनाया जाये। इसी विचार ने शासन और प्रशासन में आरक्षण की व्यवस्था को जन्म दिया।मीणा-समाज भी सदियों से शोषित रहा है और जनजाति-वर्ग का रहा है जिसका जिक्र पिछले सवासो वर्षों से भी ज्यादा पुराने सरकारी दस्तावेजों तथा इतिहास की किताबों में है।
लेकिन 26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान लागू हुआ और आरक्षण की सूचियां निकलीं तो मीणा-समाज का नाम जनजाति वर्ग की सूची से गायब था। मीणा-समाज में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई और 1950 में ही जयपुर में गांधी जयंती के दिन राजस्थान आदिवासी मीणा महापंचायत के तत्वाधान में एक विशाल मीणा-सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में सर्वसम्मति से निश्चय किया कि विगत वर्षों की जनगणना रिपोर्टों ऐतिहासिक दस्तावेजों एवं पुस्तकों तथा राजकीय अभिलेखों के आधार पर यह सिद्ध किया जाए कि मीणा जाति राजस्थान की मूल आदिवासी जाति है और इसे अनुसूचित जनजातियों की सूची में सम्मिलित न किया जाना इसके साथ घोर अन्याय है। इसके लिये एक ज्ञापन तैयार करने का दायित्व महापंचायत के अध्यक्ष श्री गोविन्दराम मीणा को सौंपा गया। 1 नवम्बर,1950 को महापंचायत के एक प्रतिनिधि मंडल ने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू,गृहमंत्री एवं प्रमुख संसद सदस्यों को ज्ञापन दिया। प्रतिनिधि मंडल में अध्यक्ष श्री गोविन्दराम मीणा के अतिरिक्त शाहजहांपुर(अलवर) के सूबेदार सांवत सिंह,कोटपुतली(जयपुर) के रामचन्द्र जागीरदार,जयपुर शहर के किशनलाल वर्मा,कोटपुतली(जयपुर) के अरिसाल सिंह मत्स्य व अलवर के बोदनराम थे। इस प्रतिनिधि-मंडल ने तीन सप्ताह दिल्ली में रहकर मंत्रियों व सांसदों को अनुसूचित जनजातियों में मीणों को न रखे जाने पर तीव्र असंतोष व्यक्त किया। गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने ज्ञापन को बडी बारीकी से पढा और आधे घण्टे तक प्रतिनिधि-मंडल की बात सुनी। यह आश्वासन भी दिया कि राजस्थान सरकार की गलती से यह भूल हुई है और जब भी कभी अनुसूचित जनजातियों की सूची में संशोधन किया जायेगा,मीणा जाति को भी इसमें शामिल कर लिया जायेगा।
प्रतिनिधि मंडल ने फ़िर भी ढिलाई नहीं बरती और सांसदों पर दबाब बनाये रखा जिस पर जोधपुर (राजस्थान) के लोकनायक जयनारायण व्यास जो उस समय सांसद थे,ने इस मांग का पुरजोर समर्थन करते हुए लोकसभा में एक प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव पर बहस हुई और अनेक सांसदों ने जिसमें मध्य प्रदेश के सांसद हरिविष्णु कामथ थे,मीणों के पक्ष में जोरदार पैरवी की। इसका परिणाम यह हुआ कि गृहमंत्री ने बहस का जबाब देते हुऐ बताया कि भारत सरकार इसके लिये एक आयोग गठित करेगी। साथ ही भारत सरकार ने राजस्थान सरकार की टिप्पणी मांगी तो राजस्थान सरकार ने 1951 की मई में केवल उदयपुर,डूंगरपुर,बांसवाडा,पाली और जालौर जिलों के मीणों को ही अनुसूचित जनजाति मानने की सिफ़ारिश की। राजस्थान आदिवासी मीणा महापंचायत ने भारत सरकार से घोर प्रतिरोध किया और मांग की कि सारे राजस्थान की मीणा जाति को अनुसूचित जनजाति में सम्मिलित किया जाये।
इसी बीच भारत सरकार ने 1953 में काका कालेलकर आयोग की नियुक्ति की घोषणा की। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार ने अनुसूचित जनजाति(संशोधन) विधेयक 1956 लोकसभा में पेश किया जिसमें अन्य जातियों के साथ-साथ राजस्थान की मीणा जाति का नाम भी जनजाति की सूची में रखा गया। संसद ने इस विधेयक को यथावत पास कर दिया जिसको भारत के राष्ट्रपति ने 25/09/1956 को स्वीकृति दे दी। इस तरह राजस्थान के मीणों को जनजाति वर्ग का आरक्षण मिला।
जिस ज्ञापन के आधार पर राजस्थान के मीणों को जनजाति वर्ग में शामिल किया गया,उसमें वर्णित दस्तावेजों में मीणा जाति को एबओरीजनल एवं प्रिमिटिव ट्राइब बताया गया वे निम्नानुसार हैं:-
1. जनगणना रिपोर्ट 1871,वोल्यूम दो पेज-48(मारवाड दरबार के आदेश से प्रकाशित)
2. जनगणना रिपोर्ट 1901, वोल्यूम 25, पेज-158
3. जनगणना रिपोर्ट 1941, पेज-41
4. इम्पीरियल गजेटियर ऑफ़ इन्डिया प्रोविन्सीयल सीरीज राजपूताना(पेज-38)
5. इम्पीरियल गजेटियर वोल्यूम प्रथम(द्वारा सी सी वाटसन) पेज-223
6. एनाल्स एण्ड एन्टीक्वीटीज ऑफ़ राजपूतना सेन्ट्रल एण्ड वेस्टन राजपूत ऐस्टेट ऑफ़ इण्डिया-लेखक कर्नल जेम्स टॉड
7. "जाति भासकर" लेखक विद्याभारती पं.ज्वाला प्रसाद मिश्र(पेज-101)
8. "मूल भारतवासी और आर्य" लेखक श्री स्वामी वेधानन्द महारिथर
9. "राजपूताने का इतिहास" लेखक पं. गौरीशंकर हीरा चन्द ओझा
10. "उदयपुर राज्य का इतिहास" (पेज-316) लेखक पं.गौरीशंकर हीरा चन्द ओझा
12. "मीन पुराण भूमिका" लेखक मुनि मगन सागर जी
बुधवार, 9 जनवरी 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
19 टिप्पणियां:
जय मीनेष
भगवान् मीनेष की इच्छा से इस वेबपोर्टल का निर्माण हुआ. समाज के होनहार युवक जो आईटी के क्षेत्र से जुडा हैं ने इसका निर्माण किया है. वेबसाइट का मुख्य उद़देश्य है समाज के विचारों का आदान प्रदान करना पूरे विश्व स्तर पर। साथ ही शिक्षा के मामले भी समाज आगे आए यह हमारा प्रमुख लक्ष्य हैं। लेकिन इसके लिए आपके सुझाव अति आवश्यक है। इसी से यह वेबसाइट मजबूत होगी।
मीणा समाज को राजस्थान में आरक्षण कैसे मिला
देश के आजाद होते ही हमारे नेताओं ने मन्थन किया कि स्वतंत्र भारत का शासन और प्रशासन कैसा हो और तय किया कि जनतंत्र के लिये आवश्यक है कि विभिन्न वर्गों में व्याप्त सामाजिक व आर्थिक असमानता को दूर किया जाये तथा सदियों से दलित,शोषित व पिछडे वर्गों को आगे लाकर उनको देश के चलाने में बराबर के भागीदार बनाया जाये। इसी विचार ने शासन और प्रशासन में आरक्षण की व्यवस्था को जन्म दिया।मीणा-समाज भी सदियों से शोषित रहा है और जनजाति-वर्ग का रहा है जिसका जिक्र पिछले सवासो वर्षों से भी ज्यादा पुराने सरकारी दस्तावेजों तथा इतिहास की किताबों में है।
लेकिन 26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान लागू हुआ और आरक्षण की सूचियां निकलीं तो मीणा-समाज का नाम जनजाति वर्ग की सूची से गायब था। मीणा-समाज में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई और 1950 में ही जयपुर में गांधी जयंती के दिन राजस्थान आदिवासी मीणा महापंचायत के तत्वाधान में एक विशाल मीणा-सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में सर्वसम्मति से निश्चय किया कि विगत वर्षों की जनगणना रिपोर्टों ऐतिहासिक दस्तावेजों एवं पुस्तकों तथा राजकीय अभिलेखों के आधार पर यह सिद्ध किया जाए कि मीणा जाति राजस्थान की मूल आदिवासी जाति है और इसे अनुसूचित जनजातियों की सूची में सम्मिलित न किया जाना इसके साथ घोर अन्याय है। इसके लिये एक ज्ञापन तैयार करने का दायित्व महापंचायत के अध्यक्ष श्री गोविन्दराम मीणा को सौंपा गया। 1 नवम्बर,1950 को महापंचायत के एक प्रतिनिधि मंडल ने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू,गृहमंत्री एवं प्रमुख संसद सदस्यों को ज्ञापन दिया। प्रतिनिधि मंडल में अध्यक्ष श्री गोविन्दराम मीणा के अतिरिक्त शाहजहांपुर(अलवर) के सूबेदार सांवत सिंह,कोटपुतली(जयपुर) के रामचन्द्र जागीरदार,जयपुर शहर के किशनलाल वर्मा,कोटपुतली(जयपुर) के अरिसाल सिंह मत्स्य व अलवर के बोदनराम थे। इस प्रतिनिधि-मंडल ने तीन सप्ताह दिल्ली में रहकर मंत्रियों व सांसदों को अनुसूचित जनजातियों में मीणों को न रखे जाने पर तीव्र असंतोष व्यक्त किया। गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने ज्ञापन को बडी बारीकी से पढा और आधे घण्टे तक प्रतिनिधि-मंडल की बात सुनी। यह आश्वासन भी दिया कि राजस्थान सरकार की गलती से यह भूल हुई है और जब भी कभी अनुसूचित जनजातियों की सूची में संशोधन किया जायेगा,मीणा जाति को भी इसमें शामिल कर लिया जायेगा।
प्रतिनिधि मंडल ने फ़िर भी ढिलाई नहीं बरती और सांसदों पर दबाब बनाये रखा जिस पर जोधपुर (राजस्थान) के लोकनायक जयनारायण व्यास जो उस समय सांसद थे,ने इस मांग का पुरजोर समर्थन करते हुए लोकसभा में एक प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव पर बहस हुई और अनेक सांसदों ने जिसमें मध्य प्रदेश के सांसद हरिविष्णु कामथ थे,मीणों के पक्ष में जोरदार पैरवी की। इसका परिणाम यह हुआ कि गृहमंत्री ने बहस का जबाब देते हुऐ बताया कि भारत सरकार इसके लिये एक आयोग गठित करेगी। साथ ही भारत सरकार ने राजस्थान सरकार की टिप्पणी मांगी तो राजस्थान सरकार ने 1951 की मई में केवल उदयपुर,डूंगरपुर,बांसवाडा,पाली और जालौर जिलों के मीणों को ही अनुसूचित जनजाति मानने की सिफ़ारिश की। राजस्थान आदिवासी मीणा महापंचायत ने भारत सरकार से घोर प्रतिरोध किया और मांग की कि सारे राजस्थान की मीणा जाति को अनुसूचित जनजाति में सम्मिलित किया जाये।
इसी बीच भारत सरकार ने 1953 में काका कालेलकर आयोग की नियुक्ति की घोषणा की। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार ने अनुसूचित जनजाति(संशोधन) विधेयक 1956 लोकसभा में पेश किया जिसमें अन्य जातियों के साथ-साथ राजस्थान की मीणा जाति का नाम भी जनजाति की सूची में रखा गया। संसद ने इस विधेयक को यथावत पास कर दिया जिसको भारत के राष्ट्रपति ने 25/09/1956 को स्वीकृति दे दी। इस तरह राजस्थान के मीणों को जनजाति वर्ग का आरक्षण मिला।
जिस ज्ञापन के आधार पर राजस्थान के मीणों को जनजाति वर्ग में शामिल किया गया,उसमें वर्णित दस्तावेजों में मीणा जाति को एबओरीजनल एवं प्रिमिटिव ट्राइब बताया गया वे निम्नानुसार हैं:-
महाकवि श्यामलदास ने लिखा है कि उदयपुर जिले के मेवल क्षेत्र में मीणों की उत्पत्ति हुई थी और ये अपनी बहादुरी के बल पर भीलवाड़ा जिले के जहाजपुर एवं माण्डलगढ़ क्षेत्र में बस गए। येलोग अपनी उत्पत्ति पृथ्वीराज चौहान से मानते हैं। ये अपने एक पूर्वज-माला जुझार का बहुत अधिक सम्मान करते हैं। मीणा सम्पूर्ण राजस्थान में फैले हुए हैं। इतिहास के अनुसार आमेर पर सुसावत मीणों का शासन था। यही बात बून्दी तथा देवरिया (प्रतापगढ़) रियासत के शासकों के बारे में कहा जा सकता है।
अलवर जिले के गजेटियर के अनुसार जयपुर के एक बहुत बड़े भू-भाग में मीणों का शासन रहा है। मीणा ३२ गोत्रों और दो भागों में विभक्त हुआ करता था -
१) जमींदार या कृषक मीणा
२) चौकीदार अथवा शासक मीणा
कृषक मीणा अच्छे कृषक समूह का नेतृत्व करता था। जबकि चौकीदार उच्च वर्ग के समूह से सम्बन्ध रखते थे। इसलिए ये कृषक मीणा समूह में जन्म लेने वाली लड़की से विवाह तो कर लेते हैं, परन्तु अपनी लड़की का विवाह कृषक मीणा समूह के लड़के से कभी नहीं करते थे। इतिहास इस बात का गवाह है कि चौकीदार वर्गीय मीणाओं ने कृषि का व्यवसाय शुरु किया, तब वे अपनी कुलीनता एवं हैसियत खो बैठे। इस प्रकार वे कृषक वर्गीय समूह मीणा समूह से जा मिले।
चौकीदार मीणों के वीरता के कारनामें दक्षिण भारत तक प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि ये लोग किसी एक बहादुर के नेतृत्व में सुदूर दक्षिण में हैदराबाद तक जाते थे और वहाँ डकैती जाते थे और अप्रत्यक्ष रुप से ठगी करता थे। ठगी अथवा लूट के माल से ये अपने आस - पास के गाँवों के लोगों की सहायता करते थे। उसी वजह से लुटेरे होते हुए भी ये अपने समूह में काफी लोकप्रिय थे। बहुसंख्यक वर्ग अपने आस - पास के इलाकों में ही चोरी और डकैती का काम किया करते थे। लोग आतंकित होकर इनके समूह को अपना गाँव सौंप देते थे और इन्हें बहुत बड़ी रकम अनौपचारिक रुप से कर के रुप में दे देते थे। उनके दुस्साहसपूर्ण कार्यों से महाराजा विजयसिंह बहुत तंग हो गये और इनपर प्रतिबन्ध लागू कर दिया। अच्छे आचरण वाले लोग उन चौकीदार मीणीं के साथ विवाह एवं हुक्के पानी के संबंध से परहेज रखने लगे।
उत्तर पूर्वी राजस्थान के मीणें स्वयं को दक्षिणी राजस्थान के मीणों से अलग मानते हैं। यह भावना खासकर प्रतापगढ़ का मीणों में देखने को मिलती है। वास्तविक स्थिति यह है कि उत्तर - पूर्वी राजस्थान के मीणा में भी देखने को मिलती है । रहन - सहन तथा आचार - संहिता तथा आचार - विचार की की दृष्टि से यह समाज की मुख्य धारा से जुड़ गया। विवाह सम्बन्ध एवं सामाजिक रिश्तों का इनका अपना अलग दायरा है
महाकवि श्यामलदास ने लिखा है कि उदयपुर जिले के मेवल क्षेत्र में मीणों की उत्पत्ति हुई थी और ये अपनी बहादुरी के बल पर भीलवाड़ा जिले के जहाजपुर एवं माण्डलगढ़ क्षेत्र में बस गए। येलोग अपनी उत्पत्ति पृथ्वीराज चौहान से मानते हैं। ये अपने एक पूर्वज-माला जुझार का बहुत अधिक सम्मान करते हैं। मीणा सम्पूर्ण राजस्थान में फैले हुए हैं। इतिहास के अनुसार आमेर पर सुसावत मीणों का शासन था। यही बात बून्दी तथा देवरिया (प्रतापगढ़) रियासत के शासकों के बारे में कहा जा सकता है।
अलवर जिले के गजेटियर के अनुसार जयपुर के एक बहुत बड़े भू-भाग में मीणों का शासन रहा है। मीणा ३२ गोत्रों और दो भागों में विभक्त हुआ करता था -
१) जमींदार या कृषक मीणा
२) चौकीदार अथवा शासक मीणा
कृषक मीणा अच्छे कृषक समूह का नेतृत्व करता था। जबकि चौकीदार उच्च वर्ग के समूह से सम्बन्ध रखते थे। इसलिए ये कृषक मीणा समूह में जन्म लेने वाली लड़की से विवाह तो कर लेते हैं, परन्तु अपनी लड़की का विवाह कृषक मीणा समूह के लड़के से कभी नहीं करते थे। इतिहास इस बात का गवाह है कि चौकीदार वर्गीय मीणाओं ने कृषि का व्यवसाय शुरु किया, तब वे अपनी कुलीनता एवं हैसियत खो बैठे। इस प्रकार वे कृषक वर्गीय समूह मीणा समूह से जा मिले।
चौकीदार मीणों के वीरता के कारनामें दक्षिण भारत तक प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि ये लोग किसी एक बहादुर के नेतृत्व में सुदूर दक्षिण में हैदराबाद तक जाते थे और वहाँ डकैती जाते थे और अप्रत्यक्ष रुप से ठगी करता थे। ठगी अथवा लूट के माल से ये अपने आस - पास के गाँवों के लोगों की सहायता करते थे। उसी वजह से लुटेरे होते हुए भी ये अपने समूह में काफी लोकप्रिय थे। बहुसंख्यक वर्ग अपने आस - पास के इलाकों में ही चोरी और डकैती का काम किया करते थे। लोग आतंकित होकर इनके समूह को अपना गाँव सौंप देते थे और इन्हें बहुत बड़ी रकम अनौपचारिक रुप से कर के रुप में दे देते थे। उनके दुस्साहसपूर्ण कार्यों से महाराजा विजयसिंह बहुत तंग हो गये और इनपर प्रतिबन्ध लागू कर दिया। अच्छे आचरण वाले लोग उन चौकीदार मीणीं के साथ विवाह एवं हुक्के पानी के संबंध से परहेज रखने लगे।
उत्तर पूर्वी राजस्थान के मीणें स्वयं को दक्षिणी राजस्थान के मीणों से अलग मानते हैं। यह भावना खासकर प्रतापगढ़ का मीणों में देखने को मिलती है। वास्तविक स्थिति यह है कि उत्तर - पूर्वी राजस्थान के मीणा में भी देखने को मिलती है । रहन - सहन तथा आचार - संहिता तथा आचार - विचार की की दृष्टि से यह समाज की मुख्य धारा से जुड़ गया। विवाह सम्बन्ध एवं सामाजिक रिश्तों का इनका अपना अलग दायरा है
इस प्राचीन मेले की अद्भुत कहानी है। सदियों पूर्व खो-नागोरियान मेला स्थान के इर्द गिर्द पहाडों में चान्दा मीणा नामक व्यक्ति का शासन था। एक दिन चान्दा मीणा अपने साथियों के साथ शिकार खेलने के लिए मेला स्थल के पास से गुजर रहा था कि उसे झाडियों में बेर खाती हुई एक महिला दिखाई पडी।
चान्दा मीणा ने उस जंगल में पहले तो उस महिला को देखकर चौंका , फिर घोडे से नीचे उतरकर उससे परिचय किया तो उस महिला ने कहा कि मैं आकाश से पटकी आपकी बहन हूं , मेरी मदद करो। यह सुन चान्दा मीणा उसे कुछ कहता उससे पहले झाडियों में से एकनवजात शिशु की रोने की आवाज आई। जब चांदा मीणा ने झाडियों में जाकर देखा तो उसे बच्चे पर सांप कुंडली मारकर बैठा नजर आया। यह देख चांदा मीणा घबरा गया। इतने में ही उस महिला के आते ही सांप वहां से चला गया। इस चमत्कार से चांदा मीणा बहुत प्रभावित हुआ और उससे राखी बंधवाकर उसे अपने साथ घर ले गया। चांदा की शरण में आकर उस महिला ने आप बीती सुनाते हुए बताया कि वह राजपूत जाति से है तथा पहले किसी राज्य की महारानी थी।
उस महिला की मर्मस्पर्शी दास्तान सुनकर चांदा मीणा ने उस बच्चे का नाम मले सिंह रख दिया और उसे बडे लाड प्यार से पाला। मले सिंह जवान होते ही घुडसवारी व अस्त्र-शस्त्र विद्या में पांरगत हो गया किन्तु वह लोगों को सताने लगा। उसने उसे सुधारने और सबक देने के लिए एक दिन उसे कंकर भरे बोरों को गधे पर लादकर मलेसिंह को कहा कि इन सोने चांदी भरे बोरों को दिल्ली दरबार में नजराना कर आओ।
यह नजराना हर वर्ष दिल्ली राजा को देने की परम्परा रही थी। उसी रूप में मले सिंह ने चांदा मीणा का आदेश पाकर दिल्ली रवाना हुआ। रास्ते में उत्सुकतावश उसने बोरों को देखने के लिए खलकाणी (कल्याणी पूर्व नाम) माता के मंदिर में बैठकर उन बोरों को खोला तो उनमें कंकर थे। मले सिंह ने माता को पुकारा। थोडी देर बाद मलेसिंह ने खलकाणी माता के भरोसे साहस बटोर कर दिल्ली की ओर कूच किया। जब दिल्ली जाकर उन बोरों को नजराना स्वरुप भेंट किया तो राजा ने देखा कि उसमें सोना-चांदी , हीरे , जवाहरात भरे है। राजा यह देखकर प्रसन्न हुआ और राजा ने मले सिंह को इनाम दिया।
मले सिंह दिल्ली से लौटते वक्त ही सोच लिया था कि इसका बदला वह चांदा मीणा से अवश्य लेगा। किन्तु उसने यह भी सोचा कि हर समय अस्त्र-शस्त्र धारण करने के बाद चांदा मीणा से बदला लेना कठिन कार्य है। काफी खोजबीन करने के बाद मलेसिंह को पता चला की मीणा लोग वर्ष में एक बार अपने पूर्वजों को याद करने के लिए खलकाणी माता के बडली के तालाब में अस्त्र-शस्त्र उतार कर उनको जल देते है। मलेसिंह उस दिन का इंतजार करने लगा। दीपावली के दिन जब चांदा मीणा अपने साथियों को लेकर अपने पूर्वजों को पानी देने आया तो मलेसिंह उनके हथियार डालने का इंतजार कर रहा था। जैसे ही उन्होंने हथियार डाले मले सिंह ने निहत्थे चांदा मीणा पर बाणों से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया। उस दिन से मलेसिंह खलकाणी माता का भक्त बनकर श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करने लगा और वर्ष में एक बार मेला लगाने लगा।
राजेश कुमार मीना जी आपने बहुत अच्छी जानकरी दी हैं
muje ye jankr bhuat khusi hui h or ummid karta hu ap age bi isi trha se hme batate rhege
बहुत अच्छा लेख है,राजेश जी ।
Jai meenesh
Bilkul she baat h ye jai meena
Muslim ki vansaj hai Rajput isliye pisse se waar karte hai
गजब भाई जो इसमें लिखा गया है जिसको
Meena samaj ki membership kse join kse plz share details
Dadarwal gotra ki uta patties kaha se hui
बहुत ही सुन्दर इतिहास सर जी
Dulewt gotta kha se h bhai koi information de do
Galat chaukidar vo the jinne gulami ki thakuro ki
किसी भाई के पास मीन पुराण है .
❤️❤️
एक टिप्पणी भेजें